राघव ' मुख जपत नाम !
( राग : सारंग ; ताल एकताल )
' राघव ' मुख जपत नाम
होत सफल सकल काम || टेक ||
यह सब है सरल बात ।
पर सुख नहिं मिलत हाथ ।
कारण कहुँ कहँ न जात ।
बिनु निश्चय सब हराम ! ||१||
पागल सम बकबक है ।
जाने बिन क्या सुख है ??
संयम नहिं विन्मुख है ।
नहिं पावत परमधाम ! ।।२ ।।
दवा - दुवा मिलाय होत ।
तबहूँ सब रोग जात ।
तुकड्या कहे , उसहि तऱ्हे ।
संयमसे ही अराम ! ॥ ३ ॥
गुरुकुंज- आश्रम ;
दि . १०-५-६२
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